Ratan Tata death (रतन टाटा): उद्योग जगत के महानायक का निधन, 86 वर्ष की आयु में ली अंतिम सांस

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रतन टाटा: उद्योग जगत के महानायक का निधन, 86 वर्ष की आयु में ली अंतिम सांस

Ratan Tata death : भारत के प्रसिद्ध उद्योगपति और टाटा समूह के चेयरमैन एमेरिटस, रतन टाटा, का 9 अक्टूबर 2024 को निधन हो गया। वह 86 वर्ष के थे और पिछले कुछ समय से मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में उपचाराधीन थे। टाटा समूह और भारत के लिए यह एक बड़ा नुकसान है, क्योंकि रतन टाटा को उनके नेतृत्व, दूरदर्शिता, और सामाजिक कल्याण में अतुलनीय योगदान के लिए जाना जाता था। उनके निधन के बाद पूरे देश में शोक की लहर दौड़ गई है, और उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए गुरुवार को महाराष्ट्र में राज्य शोक दिवस घोषित किया गया है।

रतन टाटा: एक दृष्टिकोणशील नेता

Ratan Tata death: रतन टाटा ने 1991 में टाटा समूह की बागडोर संभाली और अपनी दूरदर्शी सोच के साथ इसे एक वैश्विक ब्रांड में तब्दील कर दिया। उनके नेतृत्व में, टाटा समूह ने कई बड़े अंतरराष्ट्रीय अधिग्रहण किए, जिनमें ब्रिटेन की प्रतिष्ठित कंपनी Tetley Tea (2000), Corus Steel (2007), और Jaguar Land Rover (2008) शामिल हैं। इन सफलताओं ने न केवल टाटा समूह को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई, बल्कि भारत की औद्योगिक ताकत को भी बढ़ावा दिया

रतन टाटा ने हमेशा नवाचार और उत्कृष्टता पर जोर दिया। उन्होंने टाटा मोटर्स के लिए इंडिका और दुनिया की सबसे सस्ती कार नैनो जैसी परियोजनाओं का नेतृत्व किया। नैनो को उन्होंने भारत के मध्यम वर्ग के लिए एक किफायती वाहन के रूप में प्रस्तुत किया, हालांकि व्यावसायिक रूप से यह योजना बहुत सफल नहीं रही, लेकिन उनके इस प्रयास की सराहना की गई।

परोपकार में अद्वितीय योगदान

रतन टाटा को उनके व्यवसायिक कौशल के साथ-साथ उनके परोपकारी कार्यों के लिए भी जाना जाता है। उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य और ग्रामीण विकास के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण परियोजनाएं चलाईं। टाटा ट्रस्ट्स के माध्यम से, रतन टाटा ने देश के विभिन्न क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं, शिक्षा और पेयजल जैसी बुनियादी सुविधाओं को बेहतर बनाने के लिए बड़े पैमाने पर काम किया। उनका मानना था कि व्यवसाय का असली उद्देश्य समाज को वापस देना है, और इसी सिद्धांत के तहत उन्होंने कई परोपकारी कार्य किए

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राज्य सम्मान के साथ अंतिम विदाई

रतन टाटा के निधन के बाद महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने उन्हें राज्य सम्मान के साथ अंतिम विदाई देने की घोषणा की है। उनके पार्थिव शरीर को 10 अक्टूबर को मुंबई के नेशनल सेंटर फॉर परफॉर्मिंग आर्ट्स (NCPA) में आम जनता के दर्शन के लिए रखा जाएगा, जहां लोग उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित कर सकेंगे। इसके बाद, उनके पार्थिव शरीर को वर्ली के श्मशान घाट पर अंतिम संस्कार के लिए ले जाया जाएगा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी रतन टाटा के निधन पर शोक व्यक्त किया और उन्हें “असाधारण मानव” बताया। उन्होंने कहा, “रतन टाटा ने टाटा समूह को स्थिर और मजबूत नेतृत्व प्रदान किया। उन्होंने अपने विनम्र स्वभाव और समाज के प्रति समर्पण से लोगों के दिलों में विशेष स्थान बनाया”

सफलताओं से भरी यात्रा

रतन टाटा का जन्म 28 दिसंबर 1937 को हुआ था। उन्होंने कॉर्नेल विश्वविद्यालय से वास्तुकला में डिग्री प्राप्त की और बाद में हार्वर्ड बिजनेस स्कूल से एडवांस मैनेजमेंट प्रोग्राम पूरा किया। इसके बाद वह 1962 में टाटा समूह से जुड़े। उनके शुरुआती दिनों में उन्होंने टाटा स्टील में काम किया, जहां उन्होंने मजदूरों के साथ मिलकर काम किया और उत्पादन प्रक्रिया को समझा।

1991 में, अपने चाचा जे.आर.डी. टाटा से समूह की बागडोर संभालने के बाद, रतन टाटा ने कंपनी में कई सुधार लागू किए। उन्होंने नेतृत्व के पदों पर युवाओं को स्थान दिया और कई नई नीतियों की शुरुआत की। उनके नेतृत्व में, टाटा समूह ने आईटी, दूरसंचार, और ऑटोमोबाइल्स जैसे नए क्षेत्रों में विस्तार किया।

रतन टाटा की विरासत

रतन टाटा को उनके योगदान के लिए भारत सरकार द्वारा कई पुरस्कारों से नवाजा गया, जिनमें 2000 में पद्म भूषण और 2008 में पद्म विभूषण शामिल हैं। इसके अलावा, उन्हें ब्रिटिश सरकार द्वारा नाइट ग्रैंड क्रॉस ऑफ द मोस्ट एक्सीलेंट ऑर्डर ऑफ द ब्रिटिश एम्पायर से भी सम्मानित किया गया। रतन टाटा को भारतीय उद्योग के एक आदर्श नेता के रूप में देखा जाता है, जिनकी दूरदर्शिता और नेतृत्व क्षमता ने न केवल टाटा समूह को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया, बल्कि समाज के प्रति उनकी जिम्मेदारी को भी सिद्ध किया

निष्कर्ष

रतन टाटा का निधन भारतीय उद्योग और समाज के लिए एक बड़ी क्षति है। उन्होंने अपने जीवन में जो योगदान दिया है, वह आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करता रहेगा। उनका जीवन, उनके मूल्यों और उनके द्वारा स्थापित आदर्शों की विरासत हमें यह सिखाती है कि व्यवसाय केवल लाभ के लिए नहीं, बल्कि समाज की भलाई के लिए भी होना चाहिए। रतन टाटा का निधन एक युग का अंत है, लेकिन उनकी विरासत हमेशा जीवित रहेगी।

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